रविवार, जुलाई 31, 2016

प्रेम --
सतरंगी इक वलय है , प्रेम अपरिमित व्यास !
बंसी कान्हा तान है , राधा की ज्यों प्यास !!
जड़ चेतन से है परे , प्रेम अनगिनत रूप !
पीड़ा में अनुराग हो , छांव कभी तो धूप !!
प्रेम परम स्तुति गान है , बिरहन की है आस !
तम की कारा तोड़ दे, फैले धवल उजास !!
हित अहित तराजू नही , परहित हो आधार !
हर धड़कन सरगम बने , प्रेम तभी साकार !!
तुरता भोजन है नही , नही '' काम '' के तीर !
छप्पन भोग भोज करें , प्रेम ईश की खीर !!
चाँद कभी सूरज लगे , कैसी शीतल आग !
सावन में हो बावरा , कभी खेलता फाग !!
-- ज्योत्सना सक्सेना

मंगलवार, जून 14, 2016

घुँघरू तितलियाँ के ,,,,

तितलियाँ बाँध के घुँघरू ,निराली बन ठुमकती है 
बदलियाँ जाम से भारी , निगाहों पे छलकती हैं 
चली है तोड़ के बंधन , नदी सागर से मिलने को 
ढली हो शिल्प में जैसे ,बिना ठहरे ही चलती है 
घटायें चूमती पर्वत , हवा भी बावरी ग़ाफ़िल 
घने जंगल में जुगनू थे , दिवाली खूब हंसती है
किताबों में छिपे ख़त थे ,गुलाबों रंग छाये थे
सलामत पुल था यादों का ,लहर धड़कन मचलती है
हिना में नाम था उसका ,छिपा साजन सलोना सा
चुराए रंग कुदरत ने , दुआओं में महकती है
मंजीरे से लगे पत्ते , लबों में घुल गया शरबत
उदासी हो गई पतझड़ , बहारें मन चहकती हैं
--- ज्योत्सना सक्सेना

शुक्रवार, जून 10, 2016

प्रेम

प्रेम 
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गूंगे गुड सा शब्द है , तटबंध ना दीवार 
कलकल निर्झर सा बहे , पावन सा त्यौहार 
पावन सा त्यौहार , चांदनी देती पाती 
नयनों बसता चाँद , गीत हैं लहरें गाती
ज्योति बुझी है प्यास , रतन से तारे मूंगे
धुन में मगन पलाश , बौर आम हुए गूंगे
-- ज्योत्सना सक्सेना

फाग छाया -

फाग छाया -
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मौसम करे ठिठोली , साजन करे चिरौरी
थोडा गुलाल मल दूं , रंगीला फाग छाया
बादल नहाए रंग से , धरती भिगोए आँचल
कोयल कुहक रही है , मादक सा फाग छाया
मदिरा भरी सुनहरी ,ये बालियाँ सदा सी
ओढ़े चुनरिया सरसों , इठलाता फाग छाया
बौछार राग तरणी , आलोक मीठा चितवन
पुलकित हिया जहां का , चहुँ ओर फाग छाया
मदहोश हैं कुमुद दल , अनुराग से भरे हैं
अभिराम सी छटा है , अनमोल फाग छाया
-- ज्योत्सना सक्सेना 

गज़ल की शरारत

चाहतें धड़कन बनी थी गुनगुनाती सी लगी 
तीरगी में बन सितारा जगमगाती सी लगी 
आजमा के देख ले फिर इश्क़ करता मुझसे ही 
लाख तू नज़रें छिपाए मुस्कुराती सी लगी 
बेख़ुदी है इश्क़ की जो होश में हैं हम नही 
आग लगने पर फसल दिल लहलहाती सी लगी
गज़ल की देखो शरारत शे'र लब पे लिख दिए
शोख आँखों शायरी खुद खिलखिलाती सी लगी
बेख़बर नादान सा था तोड़ता था दिल मिरा
भूल उनकी ज्योति तुझको फिर सताती सी लगी
-- ज्योत्सना सक्सेना

मौन निमंत्रण

हिम तनया प्रस्तर अंतस से निकली गंगा गीता हूँ 
प्रेम पगी मैं सरल सहज भारत की पावन सीता हूँ 
मौन निमंत्रण चैतन्य मिलन भवसागर से तरना है 
परम इबादत करने सागर घुलने चली पुनीता  हूँ 
-- ज्योत्सना सक्सेना

बेटियां

हिम नग ऊंची सागर गहरी -- बेटियां 
शून्य विराट सभी कुछ तो हैं -- बेटियां 
आत्मबल संकल्प बसा जिसके भीतर 
साहस क्षमता समाधान हैं -- बेटियां 
-- ज्योत्सना सक्सेना